पति-पत्नी सावधान! आज से लागू हुए 10 नए नियम – जल्दी से देखे पूरी जानकारी Husband Wife Legal Update

Husband Wife Legal Update: 1 अगस्त से पति-पत्नी से जुड़े कई महत्वपूर्ण नियमों में बदलाव लागू हो गए हैं। केंद्र सरकार और सर्वोच्च न्यायालय के हालिया फैसलों के तहत विवाह से जुड़े अधिकारों और जिम्मेदारियों को स्पष्ट किया गया है। इन नए नियमों का उद्देश्य वैवाहिक जीवन में पारदर्शिता, समानता और महिलाओं की सुरक्षा को मजबूत करना है। इन बदलावों में तलाक की प्रक्रिया, भरण-पोषण के नियम, संपत्ति का अधिकार और घरेलू हिंसा जैसे अहम विषयों को शामिल किया गया है। अब पति-पत्नी दोनों के अधिकारों को समान रूप से देखा जाएगा। इसलिए यदि आप शादीशुदा हैं, तो इन नियमों की जानकारी आपके लिए बेहद जरूरी है, वरना बाद में कानूनी परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है।

तलाक की प्रक्रिया सरल

तलाक की प्रक्रिया को अब पहले की तुलना में सरल और समयबद्ध बनाया गया है। सर्वोच्च न्यायालय के आदेश के अनुसार, अब आपसी सहमति से तलाक लेने की अवधि को 6 महीने से घटाकर 3 महीने कर दिया गया है। इसका उद्देश्य यह है कि यदि दोनों पक्ष सहमत हैं, तो उन्हें अनावश्यक कानूनी जटिलताओं में न उलझाया जाए। इसके अलावा, अदालत अब यह भी देखेगी कि क्या दोनों पक्षों को एक-दूसरे से अलग होना वाकई आवश्यक है या नहीं। इससे फर्जी मुकदमों और भावनात्मक शोषण पर रोक लगेगी। यह नियम विशेष रूप से शहरी क्षेत्रों में तेजी से बढ़ते तलाक मामलों को ध्यान में रखते हुए लाया गया है।

पत्नी को संपत्ति अधिकार

अब विवाहित महिलाओं को पति की संपत्ति पर पहले से अधिक अधिकार मिलेंगे। नए नियमों के अनुसार, यदि महिला कामकाजी नहीं है और तलाक होता है, तो उसे पति की संपत्ति में हिस्सेदारी मिल सकती है। इसके साथ ही, यदि विवाह के दौरान किसी विशेष संपत्ति का योगदान पत्नी ने दिया है, तो उसे वह वापस पाने का कानूनी हक होगा। पहले यह नियम बहुत अस्पष्ट था, जिससे महिलाओं को न्याय नहीं मिल पाता था। लेकिन अब अदालतें पति की आय, जीवनशैली और पत्नी के योगदान को देखकर निर्णय लेंगी। यह बदलाव महिलाओं को आर्थिक रूप से मजबूत करने की दिशा में एक अहम कदम माना जा रहा है।

घरेलू हिंसा पर सख्ती

घरेलू हिंसा के मामलों में अब और अधिक सख्ती बरती जाएगी। यदि पति या ससुराल पक्ष द्वारा मानसिक, शारीरिक या आर्थिक शोषण किया जाता है, तो पुलिस को तुरंत एफआईआर दर्ज करनी होगी। नए दिशा-निर्देशों के अनुसार, ऐसे मामलों में पीड़िता को 48 घंटे के भीतर अस्थायी संरक्षण और आश्रय गृह की सुविधा उपलब्ध कराई जाएगी। इसके अलावा, पीड़िता को मनोवैज्ञानिक परामर्श और कानूनी सहायता भी मुफ्त दी जाएगी। यह नियम खासकर ग्रामीण और पिछड़े क्षेत्रों में रहने वाली महिलाओं की मदद करेगा, जहां घरेलू हिंसा के मामले तो होते हैं, लेकिन शिकायतें दर्ज नहीं की जातीं।

पति की जिम्मेदारियां बढ़ीं

अब पति की कानूनी जिम्मेदारियों को और स्पष्ट किया गया है। विवाह के बाद पत्नी की मानसिक, आर्थिक और सामाजिक भलाई सुनिश्चित करना पति का दायित्व माना गया है। यदि पति पत्नी की बुनियादी जरूरतें पूरी नहीं करता या उसे मानसिक रूप से प्रताड़ित करता है, तो पत्नी अदालत में शिकायत दर्ज करा सकती है। इसके अलावा, यदि पति जानबूझकर पत्नी को बच्चे के पालन-पोषण से दूर रखता है, तो यह भी एक कानूनी अपराध माना जाएगा। इस नियम का उद्देश्य पुरुषों को केवल अधिकार नहीं बल्कि बराबरी की जिम्मेदारियों के प्रति भी सजग करना है।

झूठे मामलों पर रोक

हाल के वर्षों में देखा गया है कि कई बार महिलाएं दहेज या घरेलू हिंसा के नाम पर झूठे केस दर्ज करवा देती हैं। नए नियमों के तहत अब अदालत ऐसे मामलों में पहले दोनों पक्षों की पूरी जांच करेगी, और यदि पाया गया कि मामला झूठा है, तो शिकायतकर्ता पर कार्रवाई की जाएगी। इससे पुरुषों को गलत आरोपों से राहत मिल सकेगी और न्याय प्रणाली का दुरुपयोग कम होगा। साथ ही, जांच पूरी होने तक गिरफ्तारी न करने की छूट भी पुलिस को दी गई है। यह बदलाव दोनों पक्षों को न्याय दिलाने के उद्देश्य से किया गया है, ताकि निर्दोष को सजा न मिले।

बच्चों की कस्टडी नियम

तलाक के मामलों में अब बच्चों की कस्टडी को लेकर नए दिशा-निर्देश लागू किए गए हैं। पहले अधिकतर मामलों में बच्चों की कस्टडी मां को मिलती थी, लेकिन अब अदालत यह देखेगी कि बच्चे के लिए किस पक्ष का वातावरण बेहतर है। यदि पिता अधिक सक्षम और जिम्मेदार है, तो उसे भी कस्टडी मिल सकती है। इसके अलावा, कोर्ट अब यह भी सुनिश्चित करेगी कि बच्चे दोनों माता-पिता के संपर्क में रहें। इससे बच्चों की मानसिक स्थिति पर नकारात्मक प्रभाव कम होगा। यह नियम माता-पिता के बीच चल रही कस्टडी लड़ाइयों को निष्पक्ष रूप से सुलझाने में मदद करेगा।

कोर्ट की निगरानी बढ़ी

अब वैवाहिक विवादों के मामलों में कोर्ट की निगरानी पहले से ज्यादा हो गई है। तलाक, भरण-पोषण, घरेलू हिंसा या कस्टडी के मामलों में कोर्ट समय-समय पर फॉलोअप रिपोर्ट मांगेगी और सुनिश्चित करेगी कि सभी आदेशों का पालन हो रहा है या नहीं। इसके अलावा, परिवार न्यायालयों में अब महिलाओं के लिए अलग परामर्शदात्री और कानूनी सहायक नियुक्त किए जाएंगे। इसका उद्देश्य यह है कि महिलाएं खुलकर अपनी बात कह सकें और उन्हें पूरा कानूनी सहयोग मिले। यह व्यवस्था वैवाहिक विवादों को जल्दी और निष्पक्ष तरीके से सुलझाने के लिए की गई है।

अस्वीकृति

यह लेख पति-पत्नी से जुड़े हालिया वैधानिक बदलावों और न्यायिक आदेशों पर आधारित है, जिसे आम पाठकों की जानकारी के लिए सरल भाषा में प्रस्तुत किया गया है। इसमें दी गई जानकारी विभिन्न सार्वजनिक स्रोतों और समाचार रिपोर्ट्स से ली गई है। पाठकों को सलाह दी जाती है कि किसी कानूनी निर्णय या कार्रवाई से पहले किसी योग्य अधिवक्ता या सरकारी पोर्टल से आधिकारिक जानकारी अवश्य प्राप्त करें। यह लेख केवल जागरूकता बढ़ाने के उद्देश्य से है और इसे किसी प्रकार की कानूनी सलाह न माना जाए। नियमों में समय-समय पर बदलाव हो सकते हैं, इसलिए आधिकारिक सूचना का पालन जरूरी है।

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